क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तान-अफगानिस्तान मैच के मैन ऑफ द मैच रहे अफगान खिलाड़ी इब्राहिम जादरान का एक बयान बड़ा चर्चा में है। जादरान ने कहा था कि मैं ये मैन ऑफ द मैच ट्रॉफी उन लोगों को समर्पित करना चाहता हूं, जिन्हें पाकिस्तान से वापस घर अफगानिस्तान भेजा गया।
एक समय पहले जहां पाकिस्तानी हुक्मरान अफगानिस्तान में तालिबान सरकार आने पर कसीदे पढ़ रहा था, वहीं अब पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान शरणार्थियों को वापस भेजने के एलान ने क्षेत्रीय जियो पॉलिटिक्स में नया समीकरण पैदा कर दिया है। इसके पीछे एक तरफ जहां तहरीक-ए-तालिबान का बढ़ता प्रभुत्व है तो दूसरी तरफ डूरंड लाइन का मुद्दा भी है। चीन और अफगानिस्तान की बढ़ती दोस्ती भी एशिया में नया समीकरण गढ़ रही है।
आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर खस्ताहाल पाकिस्तान के लिए यह मुद्दा फिलहाल गले की फांस बनता दिख रहा है। माना जा रहा है कि पहले से बेहाल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर और अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। शरणार्थियों के वापस जाने से पाकिस्तान में श्रम शक्ति में कमी आएगी, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है।
तालिबान सरकार का खुलकर समर्थन किया था इमरान खान ने
रायसीना हाउस के अनुसंधान निदेशक नीरज सिंह मन्हास कहते हैं कि इमरान खान के प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान सरकार ने तालिबान का खुलकर समर्थन किया था। पाकिस्तान सरकार का मानना था कि तालिबान के सत्ता में आने से अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता आएगी। हालांकि, तालिबान की वापसी के बाद से अफगानिस्तान में आतंकवाद और हिंसा में वृद्धि हुई है।
पाकिस्तान की नई सरकार ने तालिबान के साथ संबंधों में सुधार के लिए प्रयास किए हैं, लेकिन तालिबान सरकार की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई है। इसके चलते पाकिस्तान सरकार ने अफगानिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का फैसला किया है।
पाकिस्तान सरकार के इस फैसले का अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने विरोध किया है। तालिबान सरकार का कहना है कि पाकिस्तान सरकार अफगानिस्तान के लोगों के साथ अन्याय कर रही है।
नीरज सिंह मन्हास
अनुसंधा निदेशक, रायसीना हाऊस
टीटीपी की ताकत और लोकप्रियता तालिबान के लिए खतरा पैदा कर सकती है। अगर टीटीपी तालिबान सरकार को गिराने में कामयाब हुई, तो यह अफगानिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दे सकता है और यह क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है।
अचानक इसलिए सख्ती पर उतरा पाकिस्तान
नीरज सिंह मन्हास बताते हैं कि पाकिस्तान के अचानक सख्त होने की वजह है। पाकिस्तान में पहले से ही 30 लाख से अधिक शरणार्थी रह रहे हैं। इन शरणार्थियों के रहने और खाने-पीने का खर्च पाकिस्तान सरकार को उठाना पड़ता है। पाकिस्तान सरकार का कहना है कि वह इन शरणार्थियों को और अधिक समय तक नहीं पाल सकती है। दोनों देशों के बीच सीमा, आतंकवाद और पानी के मुद्दे पर विवाद चल रहा है। पाकिस्तान का मानना है कि अफगानिस्तान सरकार इन मुद्दों का समाधान करने की इच्छुक नहीं है। इसी साल अक्टूबर में पाकिस्तान के दो शहरों में हुए आतंकी हमलों में 60 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। पाकिस्तान सरकार का मानना है कि इन हमलों को अंजाम देने वाले आतंकवादी अफगानिस्तान से आए थे।